Sunday 4 December 2016

वस्त्र

वस्त्र


भारतीय वस्त्र उद्योग का देश की अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण योगदान है। जीवन की एक मूलभूत आवश्यकता होने के साथ ही इसका देश के औद्योगिक उत्पादन, रोजगार के सृजन और निर्यात के द्वारा विदेशी मुद्रा अर्जित करने में भी इसका केंद्रीय योगदान है। देश के औद्योगिक उत्पादन में 14 प्रतिशत, सकल घरेलू उत्पाद में 4 प्रतिशत तथा निर्यात आय में 13.50 प्रतिशत वस्त्र उद्योग का योगदान है। यह उद्योग देश के यह 35 मिलियन से अधिक लोगों को रोजगार प्रदान करता है। महिलाओं और अजा/अजजा के लोगों की एक बड़ी संख्या इस क्षेत्र से अपनी आजीविका अर्जित कर रही है। कपड़ा क्षेत्र कृषि के बाद दूसरा सबसे बड़ा रोजगार प्रदाता है। इस प्रकार, इस उद्योग का सर्वांगीण विकास देश की अर्थव्यवस्था के सुधार को सीधे तौर पर प्रभावित करता है।

पिछले कुछ समय से सरकार द्वारा नीतिगत उपाय शुरू किए जाने के वजह से, वस्त्र उद्योग पिछले छः दशक के मुकाबले आज कहीं ज्यादा मजबूत स्थिति में है। मूल्य के हिसाब से यह उद्योग जहां छः दशक पहले 3 से 4 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा था वहीं आज 8 से 9 प्रतिशत की दर से आगे बढ़ रहा है।

प्रगतिशील घरेलू अर्थव्यवस्था, कपास उत्पादन में वृद्धि, अनुकूल वस्त्र नीति तथा 31 दिसंबर, 2004 को समाप्त की गई बहुरेशा व्यवस्था के कारण इस क्षेत्र के विकास में काफी तेजी आई। पिछले कुछ सालों से लागू उचित कराधान नीति के कारण सभी विभागों में अवसरों की एकसमान उपलब्धता ने भी इस क्षेत्र के उद्योगों के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इस क्षेत्र के उद्योगों के लिए एक मजबूत नींव रखी जा चुकी है, जिस पर विश्वस्तरीय उत्पादन इकाइयां अपनी पूरी क्षमता का प्रयोग कर अंतर्राष्ट्रीय पटल पर में एक स्थान बना सकते हैं।
पिछले कुछ समय से सरकार द्वारा नीतिगत उपाय शुरू किए जाने के वजह से, वस्त्र उद्योग पिछले छः दशक के मुकाबले आज कहीं ज्यादा मजबूत स्थिति में है। मूल्य के हिसाब से यह उद्योग जहां छः दशक पहले 3 से 4 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा था वहीं आज 8 से 9 प्रतिशत की दर से आगे बढ़ रहा है।

वस्त्र उत्पादन और निवेश में लगातार बढ़ोतरी से इस उद्योग का विकास प्रदर्शित होता है। 2004-05 में 45.38 बिलियन वर्ग मीटर के मुकाबले 2008-09 में वस्त्र उत्पादन 55 बिलियन वर्ग मीटर था। वस्त्र उद्योग ने पिछले पांच वर्षों के दौरान निवेश में काफी उछाल देखा है, जो 2004-05 के 7,349 करोड़ रुपए से बढ़ कर वर्ष 2005-06 में 15,032 करोड़ रुपए, वर्ष 2006-07 में 66, 233 करोड़ रुपए, 2007-08 में 19,917 करोड़ रुपए और 2008-09 में 42,807 करोड़ रुपए तक पहुंच गया है। अनुमान है की यह निवेश 2012 तक 1,50,600 करोड़ रुपए के आंकड़े को छू लेगा। निवेश में ये बढ़त वर्ष 2012 तक 17.37 मिलियन नौकरियों (12.02 मिलियन प्रत्यक्ष और 5.35 मिलियन अप्रत्यक्ष) का सृजन करेंगी।

निर्यात

कपड़ा उद्योग भारतीय अर्थव्यवस्था की आधारशिला है, देश के व्यापारिक निर्यात में इसकी हिस्सेदारी 13.5 प्रतिशत की है। मल्टी फाइबर व्यवस्था (एमएफए) के समाप्त होने के बाद नई तकनीकों और क्षमता विकास के द्वारा उद्योग ने विकास की नए सोपान तय किए हैं। एमएफए के बंद होने के एक साल के भीतर भारतीय निर्यात में 22 प्रतिशत की दर से विकास हुआ है। वर्ष 2004-05, 2005-06 और 2006-07 में भारतीय वस्त्र और कपड़े का निर्यात क्रमशः 14, 17.52 और 18.73 बिलियन अमेरिकी डालर का रहा। भारतीय वस्त्र उद्योग कई उतार-चढ़ाव देख चुका है। एक ओर जहां 2007-08 में भारतीय रुपए की कीमतों में बढ़त हुई वहीं दूसरी तरफ 2008-09 में वैश्विक मंदी की मार भी इसे झेलनी पड़ी। वर्ष 2007-08 में भारत का वस्त्र निर्यात 25.06 बिलियन अमेरिकी डालर के मुकाबले 22.13 बिलियन डालर रहा। वर्ष 2008-09 में यह 18.51 बिलियन डालर रहा (वित्तीय वर्ष अप्रैल-फरवरी 2008-09) जबकि इसी अवधि के दौरान पिछले साल 19.55 बिलियन अमेरिकी डालर का निर्यात हुआ।

परिधान और वस्त्र

परिधान उद्योग एक निर्यात प्रधान उप-क्षेत्र है जो कुल भारतीय वस्त्र निर्यात में 40-45% का योगदान देता है। यह एक कम निवेश आवश्यकता और श्रम प्रधान उद्योग है: उप क्षेत्र में 1.00 लाख रुपए का निवेश 6-8 नौकरियां सृजित करता है।

लघु उद्योग के लिए रखे गये परिधान उत्पाद आरक्षित कर दिए जाने के कारण कपड़ा उद्योग की वृद्धि अवरुद्ध हो गई थी । परिणामस्वरूप, परिधान इकाईयां ना तो अर्थव्यवस्था की अधिकतम पैमाने को प्राप्त कर पाईं और न ही अंतरराष्ट्रीय गुणवत्ता वाले वस्त्रों का उत्पादन कर सकीं।
बदली हुई परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, सरकार ने 2002-03 में बुने हुए परिधान को और नीट-वियर क्षेत्र को 2005-06 में आरक्षण से मुक्त कर दिया। इस उद्योग को दसवीं पंचवर्षीय योजना के दौरान उत्कृष्टता प्राप्त हुई। शुरुआत में इसकी 15 -16 प्रतिशत की दर से बढ़त हुई और 2005 -2006 के दौरान, इसकी विकास दर 20 -22 प्रतिशत तक पहुंच गयी। इस त्वरित विकास दर के लिए उत्प्रेरक अंतरराष्ट्रीय बाजार में कोटा के शासन का अंत, संगठित खुदरा बिक्री में वृद्धि, घरेलू बाजार में उपभोक्तावाद का विकास, और एक अनुकूल शासन नीति आदि हैं।

दसवीं पंचवर्षीय योजना के दौरान, बने बनाए वस्त्रों का निर्यात 13 .72 प्रतिशत की वार्षिक दर से बढ़ा । इस क्षेत्र में बड़ा बदलाव तब देखा गया जब 2005-06 में यह 28 प्रतिशत तक बढ़ गया। 2012 तक इस उप क्षेत्र में 21.800.00 करोड़ रुपये की निवेश की आवश्यकता होगी, जो 56.40 लाख लोगों के लिये रोजगार पैदा करेगा, जिसमें से 28.25 लाख लोग अर्ध प्रशिक्षित और 11.30 लाख लोग अप्रशिक्षित होंगे। वस्त्र और परिधान के उप क्षेत्र में रोजगार और निर्यात की क्षमताओं को देखते हुए, सरकार इसके विकास और विस्तार को प्राथमिकता देगी। कठोर श्रम कानूनों में सुधार के प्रयास किये जायेंगे और सार्वजनिक निजी भागीदारी के जरिये ब्रांड को बढ़ावा दिया जाएगा। कामन डेटा प्रदान करने के लिए और इस उद्योग के लिये बिक्री के प्रतिष्ठानों की स्थापना की जायेगी।

तकनीकी विकास

सरकार योजना के तहत, बैंकों और वित्तीय संस्थाओं द्वारा ली जाने वाले ब्याज राशि के 5% (कताई क्षेत्र के लिए 4%) की वापसी सुनिश्चत करती है, जिससे प्रौद्योगिकी उन्नयन की योजना बना रही इकाइयों के पास क्रेडिट की उपलब्धता बनी रहे। वस्त्र और जूट सब-सेक्टर से जुड़ी लघु इकाइयों के लिए ब्याज दर में मिलने वाली पांच प्रतिशत की सब्सिडी के स्थान पर मार्जिन राशि में 15 प्रतिशत की राहत दी जाती है। वहीं विकेंद्रीकृत हथकरघा इकाइयों को टीयूएफएस योग्य मशीनरी में निवेश के लिए 20 प्रतिशत मार्जिन मनी राहत ब्याज में मिलने वाली 5 प्रतिशत की छूट के बदले उपलब्ध कराई जाती है। वस्त्रों के प्रसंस्करण के लिए तकनीकी रूप से आवश्यक मशीनों के लिए योजना के तहत पूंजी लागत में दस प्रतिशत की राहत ब्याज राहत के पांच प्रतिशत के अलावा प्रदान की जाती है। इस योजना के तहत आयात की जाने वाली पुरानी मशीनें सहायता या छूट के लिए पात्र नहीं हैं। ऐसे पुराने शटलरहित करघे जिनका मूल्य आठ लाख रुपए से ज्यादा न हो और जो कम से कम दस साल तक काम लायक हों इसका अपवाद हैं। इस योजना का लाभ वस्त्र उद्योग के लगभग सभी क्षेत्रों को मिलता है।

अपने प्रारंभिक वर्षों के दौरान योजना की प्रगति की संतोषजनक थी और 2004-05 के बाद से इसने गति प्राप्त की। योजना प्रारंभ किए जाने से लेकर 31 मार्च 2009 तक 24,867 आवेदन प्राप्त किया गया है। इन परियोजनाओं की कुल लागत 1,69,016 करोड़ रुपए है, इनमें से 1,66,839 करोड़ रुपए की लागत वाले 24,685 आवेदन स्वीकृत किए जा चुके हैं।

वस्त्र उद्योग ने पिछले पांच वर्षों के दौरान निवेश में उछाल देखा है। 2004-09 के बीच संचयी निवेश रुपए 1,51,338 करोड़ रुपए का रहा है। निवेश का मुख्य कारण प्रौद्योगिकी उन्नयन कोष योजना (टीयूएफएस) रहा है। निवेश में होने वाली वृद्धि प्रौद्योगिकी उन्नयन, विकास की संभावना वाले क्षेत्र में आधारभूत सुविधाओं के विकास को मजबूत करने के अलावा अतिरिक्त स्पिंडल्स और करघों की स्थापना को बढ़ावा देगी। इसके अलावा यह योजना वस्त्र निर्माण, तकनीकी वस्त्रों और वस्त्रों के प्रसंस्करण जैसे विकास की भारी संभावना वाले क्षेत्रों में मूल्य संवर्धन और रोजगार के अवसर प्रदान करेगा।

तकनीकी वस्त्र

तकनीकी वस्त्र का वैश्विक बाजार वर्ष 2005 में 107 अरब अमेरिकी डॉलर था जिसके 2010 तक बढ़कर 127 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है। तकनीकी वस्त्र के भारतीय बाजार का आकार 2005 के 6.7 अरब अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 2010 तक 12.46 अरब डॉलर होने की उम्मीद की जा रही है (सीएजीआर 11.25%)। भारतीय संदर्भ में, बिल्डटेक, जियोटेक, मेडिटेक और प्रोटेक समूह के तकनीक वस्त्र महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं।

ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना अवधि के दौरान तकनीकी वस्त्र विकास एवं उन्नयन योजना सरकार द्वारा लागू की जाएगी। स्कीम के तहत 44 करोड़ की लागत से चार उत्कृष्ट केंद्रों की स्थापना की जाएगी। इनमें से एग्रोटेक, बिल्डटेक, मेडीटेक और जियोटेक के लिए एक-एक उत्कृष्ट केंद्रों की स्थापना की जाएगी। संश्लेषित और कला रेशम मिल अनुसंधान संगठन, मुंबई मानवनिर्मित वस्त्र अनुसंधान संस्थान, सूरत और नवसारी कृषि विश्वविद्यालय, नवसारी, गुजरात को एग्रोटक तकनीकी वस्त्र विकास के लिए नामित किया गया है। उत्तर भारतीय वस्त्र अनुसंधान संगठन, गाजियाबाद को भारतीय तकनीकी संस्थान (आईआईटी) दिल्ली के साथ प्रोटेक तकनीकी वस्त्र विकास के लिए नामजद किया गया है। अहमदाबाद वस्त्र उद्योग संगठन, अहमदाबाद और बॉम्बे वस्त्र अनुसंधान संगठन, मुंबई को जियोटेक तकनीकी वस्त्र विकास हेतु चुना गया है। दक्षिण भारत वस्त्र अनुसंधान संगठन, कोयंबटूर और एसी महाविद्यालय, कोयंबटूर को मेडीटेक तकनीकी वस्त्र विकास की जिम्मेदारी सौंपी गई है। जियोटेक वस्त्र उत्कृष्ट केंद्र का बॉम्बे वस्त्र अनुसंधान संगठन, मुंबई में उद्घाटन किया जा चुका है जबकि जियोटेक उत्कृष्ट केंद्र जल्द ही कोयंबटूर में काम करना प्रारंभ कर देगा।

सरकार ने तकनीकी वस्त्र प्रौद्योगिकी मिशन को ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना अवधि (2007-12) के दौरान कार्यान्वित करना प्रस्तावित किया है। मिशन के तहत वस्त्र उद्योग के लिए क्षमता विकसित करने, मानक विकास, उत्पाद विकास और परीक्षण सुविधाओं, घरेलू और निर्यात बाजार के विस्तार और कौशल विकास आदि का काम किया जाएगा।

बुनियादी ढांचा विकास

हस्तशिल्प, हथकरघा और विकेंद्रीकृत विद्युतकरघों के समूह, जिनमें कम से कम पांच हजार करघे हों (हथकरघे और विद्युतचालित करघे) को विश्वस्तरीय बुनियादी और उत्पादन सुविधा प्रदान करने लिए एक समग्र समूह विकास योजना बनाई गई है। इसके अंतर्गत् निम्न मेगा समूहों के विकास के लिए काम किया जा रहा हैः
  • वाराणसी (उत्तर प्रदेश) और शिवसागर (असम) के हथकरघा समूह
  • नरसापुर (आंध्र प्रदेश) और मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश) के हस्तशिल्प
  • भिवंडी (महाराष्ट्र) और इरोड (तमिलनाडु) के विद्युतचालित करघे
एकीकृत टेक्सटाइल पार्क योजना जुलाई 2005 में पहले से चल रही दो योजनाओं एपैरल पार्क्स फार एक्सपोर्ट स्कीम और टेक्सटाइल सेंटर इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट स्कीम का सम्मिलन करके बनाई गई। इसका लक्ष्य वस्त्र उद्योग के विकास की संभावना वाले क्षेत्रों में बुनियादी सुविधाओं को मजबूत करना है।

दसवीं पंचवर्षीय योजना में एकीकृत टेक्सटाइल पार्क योजना के अंतर्गत 30 टेक्सटाइल पार्कों के स्थापना को हरी झंडी दिखाई गई। सरकार ने एकीकृत टेक्सटाइल पार्क योजना को ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना के दौरान भी जारी रखने का फैसला किया है। एक टेक्सटाइल पार्क ‘पल्लाडम हाई-टेक वीविंग पार्क’ की शुरुआत 19 अप्रैल 2008 को की गई। ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना के दौरान 10 अतिरिक्त पार्क विकसित किए जायेंगे। ये 40 पार्क चालू होने पर 21,502 करोड़ का निवेश आकर्षित करने के अलावा 9.08 लाख श्रमिकों के लिए रोजगार (प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष) रोजगार प्रदान करेंगे। इन के द्वारा सालाना उत्पादित सामान की कीमत 38115 करोड़ रुपए होगी।

मानव संसाधन विकास

मानव संसाधन विकास (एचआरडी) एक औद्योगिक संगठन के लिए सबसे महत्वपूर्ण निवेश है। समूचे विश्व कपड़ा बाजार में तीव्र प्रतिस्पर्धा है, और इस परिदृश्य में, अंतरराष्ट्रीय बाजार में बाजार हिस्सेदारी सुधारने और आयातित कपड़ों की प्रतिस्पर्धा में बने रहने के लिए मानव संसाधन विकास के मुद्दे पर ध्यान देना जरूरी है। मानव संसाधन के विकास के पीछे मूल विचार उपलब्ध बौद्धिक पूंजी का अधिकतम उपयोग कर उत्पादकता और वस्त्र उत्पादों की गुणवत्ता में सुधार करना है।

वर्ष 2012 में प्रशिक्षण की जरूरत

परिधान टेक्सटाइल क्षेत्र में सबसे बड़ा रोजगार प्रदाता हो जाएगा। इस बात की स्वीकृति राष्ट्रीय विनिर्माण प्रतिस्पर्धा परिषद (एनएमसीसी) और योजना आयोग द्वारा की गई है। रोजगार के अवसरों में विकास के अवसर को पूरा करने के लिए शिक्षा और व्यावसायिक प्रशिक्षण संस्थानों को लगभग छह लाख श्रमिकों को प्रशिक्षित करना होगा।

इस पंचवर्षीय योजना में बढ़े रोजगार के अवसरों के कारण एक 65 लाख लोगों को कताई, बुनाई, प्रसंस्करण और पहनावे के काम में रोजगार प्राप्त होगा।

Source: National Portal Content Management Team

No comments:

Post a Comment